Gopalganj News: यहां कागजों तक सीमित है वाहनों की फिटनेस

Tue, 26 Apr 2016

व्यवस्था तो बनी है वाहनों को पूरी तरह से फिट रखकर ही सड़क पर उतराने की। इस व्यवस्था को सही तरीके से लागू करने के लिए मोटर यान निरीक्षक की भी तैनाती की गयी है। लेकिन यहां फिटनेस जांच के दौरान मानकों का उल्लंघन होता है। कागज पर ही पूरी जांच कर ली जाती है और हरेक इलाके में फिटनेस के मानक पर असफल वाहन सड़क पर दौड़ते हैं। ग्रामीण इलाकों में इनकी संख्या अधिक है। लेकिन शहरी इलाके भी मानक के विफल वाहन भी धड़ल्ले से संचालित होते हैं।

जिला परिवहन कार्यालय के आंकड़े बताते हैं कि यहां व्यवसायिक तथा निजी वाहनों की फिटनेस जांच निर्धारित अवधि के अंदर होती है। इस कार्य के लिए बकायदा जिला परिवहन कार्यालय में काउंटर भी खुला है। सप्ताह में दो दिन मोटर यान निरीक्षक कार्यालय भी आते हैं और वाहनों की पूरी जांच के बाद भी फिटनेस प्रमाण पत्र दिये जाते हैं। धरातल पर स्थिति कुछ और है। आज के समय में हरेक इलाके में ऐसी सैकड़ों गाड़ियां दौड़ती मिल जाती हैं, जो फिटनेस के मानक पर खरा नहीं उतरतीं। बगैर बैक लाइट के तो सैकड़ों की संख्या में बसें व जीप मिल जाते हैं। जिनका प्रयोग व्यवसायिक वाहन के रुप में किया जाता है। इसी प्रकार फाग लाइट तथा कलर रिफ्लेक्टर लगाये बगैर भी वाहन धड़ल्ले से चलाए जाते हैं। इस व्यवस्था पर रोक कहीं से भी नहीं दिखता। सड़क पर डग्गामार बसें दौड़ती हैं। इन वाहनों से काला धुंआ निकलता है। बात यहीं समाप्त नहीं होती। कई मोटरसाइकिलें भी शहर में दौड़ती हैं जिनमें से तेज आवाज के साथ काला धुंआ निकलता है। ये काला धुंआ सड़क से होकर गुजरने वाले लोगों को फेफड़ा जनित रोगों को आमंत्रण देता है।

परिचालन बंद करने का है नियम

परिवहन विभाग की मानें तो फिटनेस के मानक पर खरा उतरने में विफल वाहनों का परिचालन रोक देने का प्रावधान है। लेकिन जिला परिवहन कार्यालय में ऐसा कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि जिले में एक भी व्यवसायिक वाहन को फिटनेस के नाम पर रोका गया हो। काउंटर पर आवेदन देने के साथ लागू किये गये कागजातों को देने मात्र से आसानी से फिटनेस प्रमाण पत्र मिल जाता है।

क्या है नियम

* नये वाहनों की दो साल बाद होती है फिटनेस की जांच।

* पुराने वाहनों को हरेक वर्ष लेना होता है प्रमाण पत्र।

* गाड़ियों को प्रमाण पत्र देने के पूर्व चलाया जाना अनिवार्य।

* ब्रेक व इंजन की होती है जांच।

* इंडिकेटर, लाइट, बैक लाइट आदि की जांच।

* गाड़ी का देना होता है टैक्स टोकन।

* इंश्योरेंस देखने के बाद देना है प्रमाण पत्र।

* प्रदूषण जांच रिपोर्ट है प्रमाण पत्र के पूर्ण जरुरी।

* पिछले साल के फिटनेस प्रमाण पत्र को साथ लगाना। जरुरी

क्या है हकीकत

* सड़क पर चल रही डग्गामार बसें।

* सैकड़ों वाहनों में नहीं है बैक लाइट व इंडिकेटर।

* काउंटर पर आवेदन देने मात्र से हो जाता है जांच।

* फिटनेस देने के पूर्व नहीं होती वाहनों की सही परख।

* धुंआ उगलती बसें बनी ग्रामीण इलाकों की पहचान।

* मुख्यालय में भी दौड़ते हैं धुंआ देते वाहन।

Ads:

सम्बंधित खबरें:







Ads Enquiry