Thu, 21 Apr 2016
घर के मुंडेर पर दांत निपोरते बंदर हो या सड़कों पर घूमते आवारा कुत्ते, अभी ये समस्या ही बने रहेंगे। शहर से लेकर गांव में मुसीबत बन कर घूम रहे आवारा आतंक से निपटने के लिए जिले में आज तक कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। लोगों को नोचने खसोटने वाले बंदर और कुत्ते के साथ ही सिंग मारने वाले आवारा पशुओं से भी निपटने के लिए अभी यहां कोई व्यवस्था नहीं है। नगर परिषद क्षेत्र में कांजी हाउस(आवारा पशुओं को रखने की जगह) भी मृत हो चुकी है। तीन साल से डाक में बोली नहीं लगने के कारण कांजी हाउस बंद हो चुका है। आवारा कुत्ते से लेकर आवारा पशुओं को पड़कर कर रखने के मामले में नगर परिषद असहाय बन हुआ है तो वन विभाग भी बंदरों से आतंक से निपटने के लिए बाहर के दस्ते पर निर्भर है। संसाधन के अभाव में वन विभाग बंदरों को पकड़ने के लिए गोरखपुर की टीम पर निर्भर है। लेकिन वहां से टीम बुलाने में आने वाले खर्च उठाना वन विभाग के कुवत से बाहर ही बना हुआ है। लिहाजा न तो आज तक आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए इस जिले में कभी अभियान चला और ना ही बंदरों के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए कभी पहल की गयी।
अभी जारी रहेगा मेढ़ों पर लाठियों का पहरा
शहर के लेकर गांव तक मुसीबत बने आवारा कुत्तों से तो खैर लोग गली मोहल्ले में ही लाठी डंडा से पीट कर निपट ले रहे हैं। लेकिन बंदरों के आतंक से बचने के लिए जिले के उचकागांव तथा भोरे के कई गंावों में लोगों को मेढ़ो तक पर लाठियों का पहरा देना पड़ रहा है। भोरे के उत्तर पूर्वी छोर के करीब आधा दर्जन गांवों के साथ ही उचकागांव के कई गांवो के लोगों का बंदरों ने जीना हराम कर रखा है। साल भर से बंदर के आतंक से आजिज आए ग्रामीण अब साहस और सर्तकता से अपना बचाव तो कर लेते है। लेकिन इन गांवों से होकर आने-जाने वाले लोग अक्सर उस बंदर का शिकार होते रहते हैं। बंदर का सर्वाधिक हमला मोटरसाइकिल तथा ट्रैक्टर चालकों पर होता है। न जाने कब किधर से बंदर आकर हमला कर दें यह आशंका हमेशा बनी रहती है। ऐसे में ग्रामीण बंदर से निपटने के लिए लाठी के सहारे पहरा देने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं।
नगर परिषद ने गठित किया दस्ता
आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए नगर परिषद ने एक दस्ता का गठन किया है। लेकिन आवारा पशुओं का पकड़ कर कहां रखा जाए यह समस्या बनी हुई है। नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी राजीव रंजन सिन्हा कहते हैं कि तीन साल से कांजी हाउस के लिए जमानत राशि ज्यादा होने के कारण डाक नहीं हो सका। अब जमानत राशि कम कर डाक की तैयारी की जा रही है। उन्होंने बताया कि आवारा कुत्ता को पकड़ने के लिए इंस्टेक्टर का पद यहां नहीं है। दस्ता गठित किया गया है। जल्दी की आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए अभियान शुरू किया जाएगा।
वन विभाग के पास नहीं हैं संसाधन
बंदरों को पकड़ने की जिम्मेदारी वन विभाग की है। लेकिन वन विभाग के पास बंदरों को पकड़ने के संसाधन नहीं है। जिला वन पदाधिकारी भोला प्रसाद कहते हैं कि बंदरों को पकड़ने के लिए साल में दस से बारह हजार रुपये आवंटन मिलता है। बंदर को पकड़ने के लिए गोरखपुर से टीम बुलानी पड़ती है। यह टीम एक दिन के लिए पंद्रह से बीस हजार रुपया लेती है। हालांकि वन विभाग वन प्राणी के हमले में घायल लोगों को मुआवजा देता है। डीएफओ ने बताया बंदर या किसी भी वन प्राणी के हमले में गंभीर रूप से घायल हुए लोगो को साठ हजार, कम घायल हुए लोगों को पंद्रह हजार तथा हमले में मारे गए मृतकों के परिजनों को पांच लाख की मुआवजा राशि दी जाती है। उन्होंने बताया कि इस साल अभी तक दो लोगों को मुआवजा राशि दी गयी है।