खेतों में लहलहा रहे सरसों के पौधे की पत्तियां अगर मुड़ी दिखें तो किसान सतर्क हो जाएं। यह लाही कीट का प्रकोप हो सकता है। लाही कीट मुलायम पत्तियों, टहनियों और तनों के साथ ही फलियों का रस चूस लेते हैं। इससे पत्तियां मुड़ जाती है। लाही कीट का फसलों पर प्रकोप बढ़ने से फलियां नहीं बनती हैं। जिससे पैदावार पर काफी असर पड़ता है। पर, इस स्थिति से किसानों को चिंतित होने की जरुरत नहीं है। बस, उन्हें पौधों पर नजर रखी होगी। पौधों पर कीट का प्रकोप दिखे तो समय से उपचार करना होगा। हर रोग के लिए दवाएं उपलब्ध हैं। हां, अगर पौधों की देखभाल में किसान चूक गए तो आगे चलकर कम पैदावार के रूप में उन्हें ही नुकसान उठाना पड़ेगा।
सिपाया कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डा.राजेंद्र प्रसाद बताते हैं कि इस मौसम में तिलहन की फसल में कीटों को प्रकोप बढ़ जाता है। ऐसे में किसानों को अपनी फसल पर नजर रखनी चाहिए। वे कहते हैं कि तिलहनी फसल में मुख्य रूप से लाही, सफेद रस्ट(हरदा रोग), अल्टरनेरिया लीफ स्पाट, आरा मक्खी का प्रकोप होता है। इन कीटों के प्रकोप से फसल को काफी नुकसान होता। लेकिन अगर किसान समय से रोगों की पहचान कर लें, तो उस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। हर रोग की दवाएं उपलब्ध है। बस, किसान को अपनी फसल पर नजर रख कर समय से उपचार करने की पहल करनी होगी।
रोग व उसके लक्षण तथा उपचार
1. लाही: लाही कीट पीला, हरा या काले भूरे रंग का मुलायम पंख या पंख हीन होता है। यह पत्तियों, टहनियों, तनों तथा फलियों का रस चूसते हैं। जिससे पत्तियां मुड़ कर नष्ट होने लगती हैं।
उपचार: नीम आधारित कीटनाशक का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए। रासायनिक कीटनाशी के रूप में आक्सीडेमेटान मिथाइल 25 इसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर या मालाथियान 50 इसी 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
2. सफेद रस्ट: इस रोग में सफेद या हल्के पीले रंग के अनियमिताकार फफोले बनते हैं। इसका आक्रमण पुष्पक्रमों पर होने पर पुष्पक्रम मोटे और विकृत हो जाते हैं।
उपचार: खड़ी फसल में इस रोग का आक्रमण होने पर मैन्कोजेब 75 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
3. अल्टरनेरिया लीफ स्पाट: इस रोग के लक्षण पत्तियों पर छोटे-छोटे हल्के भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई पड़ते हैं। जिसके बीच में अनेक छल्ला बना होता है। रोग की तीव्रता बढ़ने पर पूरी पत्तियां झुलस जाती हैं।
उपचार: फसल को खर पतवार से मुक्त रखें। खड़ी फसल पर इस रोग का आक्रमण होने पर मैंकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
4. आरा मक्खी: आरा मक्खी पत्तियों के किनारे पर अंडा देती हैं। जिससे तीन से पांच दिन में पिल्लू निकल आते हैं। इसके पिल्लू पत्तियों को काट कर क्षति पहुंचाते हैं।
उपचार: नीम आधारित कीटनाशी 5 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। रासायनिक कीटनाशक में मिथाइल पाराथियान 2 प्रतिशत धूल या मालाथियान 5 प्रतिशत धूल का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भूरकाव करना चाहिए। या मिथाइल पाराथियान 50 इसी का एक मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से फसल पर छिड़काव करना चाहिए।