Gopalganj News: उसर भूमि को भी उपजाऊ बनाता है ढैंचा

खेतों की उर्वरा शक्ति पर असर डालने वाली मंहगी रसायनिक खाद की जगह अब ढैंचा हाजिर है। ढैंचा की खेती कर किसान न सिर्फ अपने खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ा सकते हैं, बल्कि धान की फसल में ढैंचा के इस्तेमाल से चावल के स्वाद के साथ ही प्रोटीन और विटामिन की मात्रा भी बढ़ जाती है। ढैंचा लगाने के लिए किसानों को मशक्कत भी नहीं करनी होगी। कृषि विभाग अनुदान पर ढैंचा बीज उपलब्ध करा रहा है और साथ में इसे लगाने और हरी खाद में बदलने का प्रशिक्षण भी। बस, किसानों को इसके लिए पहल करनी होगी और गेहूं काटने के तुरंत बाद खेतों की जुताई कर उसमें ढैंचा लगाना होगा। बोआई के 55 दिन बाद ढैंचा को बस मिट्टी में दबाना होगा। इसके बाद जब जुलाई में किसान धान की रोपनी करेंगे तब ढैंचा की हरी खाद धान के लिए रामवाण का काम करेगी।

जिला कृषि पदाधिकारी डा.वेदनारायण सिंह ने बताया कि हरी खाद के लिए मूंग के साथ ही ढैंचा की खेती पर जोर दिया जा रहा है। ढैंचा का बीज भी किसानों को अनुदान पर उपलब्ध कराया जा रहा है। वे कहते हैं कि अन्य हरी खादों की तुलना में ढैंचा अधिक कार्बनिक अम्ल पैदा करती है। जिसके कारण ऊसर, लवणीय और क्षारीय भूमि को सुधार कर ढैंचा उपजाऊ बनाती है। वे कहते हैं कि धान की फसल में ढैंचा के इस्तेमाल से विटामिन और प्रोटीन की मात्रा चावल में बढ़ जाती है। धान की खेती से पहले ढैंचा को हरी खाद में प्रयोग का नतीजा काफी अच्छा पाया गया है। ढैंचा बुआई के 55 दिन बाद अच्छी बढ़वार होने पर लगभग 25-30 टन हरी खाद प्रति हेक्टेयर पैदा करती है, जो अन्य हरी खादों से बहुत अधिक है। वे कहते हैं कि गेहूं फसल की कटाई के तुरंत बाद खेत की जुताई कर ढैंचा की बुआई करनी चाहिए। बोआई के 55 दिन बाद ढैंचा की हरी फसल को मिट्टी पलटने वाले हल से मिट्टी में दबा देना चाहिए। जून के अंत तथा जुलाई की शुरुआत में बारिश होने से ढैंचा अच्छी तरह से सड़ कर हरी खाद में बदली जाती है। ढैंचा को मिट्टी में दबाने के 15 दिन बाद खेत धान की रोपनी के लिए तैयार हो जाता है।

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