Gopalganj News: सामान खरीदने पर यहां नहीं मिलता पक्का रसीद

 यहां उपभोक्ताओं को अपने अधिकार की बखूबी जानकारी है, और समान की खरीदारी पर ये मोलभाव भी करते हैं। लेकिन खरीदे गए समान का बिल लेने का दिल अभी यहां के उपभोक्ताओं को नहीं करता है। दुकान पर गये, समान का मोल भाव किया और कुछ कम-बेस कराकर खरीदारी करने की प्रवृत्ति यहां आम उपभोक्ताओं में अब भी बनी हुई है। हां, बात जब महंगे समान की आती है और उस पर गारंटी-वारंटी का चक्कर होता है तब बिल जरूर लिया जाता है। इन महंगी सामग्री की गुणवत्ता के प्रति भी उपभोक्ता सजगता दिखते हैं। इस सजगता का नतीजा है कि उपभोक्ता न्यायालय में आठ सौ से अधिक मामले लंबित हैं। ऐसा तब है जबकि प्रति माह उपभोक्ता न्यायालय से औसत 10 से 15 मामले निपटा दिये जाते हैं। लेकिन उपभोक्ता न्यायालय में पहुंचने वाले ये मामले महंगी सामग्री की खरीदारी, निजी चिकित्सकीय सेवा में त्रुटि, बीमा और बैंक से ही संबंधित हैं। उपभोक्ता संरक्षण कानून की जानकारी होने के बाद भी उपभोक्ता सामान्य खरीदारी और उसके बिल-वाउचर के प्रति उदासीन ही बने हुए हैं।

शिक्षण संस्थानों के प्रति है उदासीनता

उपभोक्ता संरक्षण के दायरे में आने के बाद भी यहां लोगों में शिक्षण संस्थानों की सेवा के प्रति उदासीनता बनी हुई। पढ़ाई से लेकर फीस को लेकर शिक्षण संस्थानों में हो-हंगामा भी होता रहता है। लेकिन इसका भी दायरा सिर्फ सरकारी स्कूलों और कालेजों तक ही सिमटा हुआ है। निजी शिक्षण संस्थानों की सेवा की शिकायत तो की जाती रहती है। लेकिन इनकी सेवा में त्रुटि का मामला आज तक उपभोक्ता न्यायालय तक नहीं पहुंचा।

बिका माल वापस नहीं, एक्ट का उल्लंघन

अगर कोई दुकानदार बिके हुए माल को वापस करने से इंकार करता है तो यह भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 14 का उल्लंघन है। इसके तहत जरुरी यह है जब आपने सामान खरीदा है तो उसका रसीद दुकानदार ने आपको दिया हो।

रसीद प्राप्त करना हर व्यक्ति का अधिकार

एक्ट के प्रावधान के अनुसार सामान खरीदने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सामान का रसीद पाने का अधिकार है। नियमों की मानें तो रसीद नहीं देने वाले दुकानदारों पर कार्रवाई हो सकती है। ऐसे में अगर कोई दुकानदार सामान का रसीद नहीं देता है तो उसके यहां सामान ही आप न खरीदें। रसीद प्राप्त करने पर सामान की गुणवत्ता की गारंटी रहती है।

लंबित हैं आठ सौ से अधिक मामले

उपभोक्ता न्यायालय में आठ सौ से अधिक मामले लंबित हैं। ऐसा तब है जबकि औसत 10 से 15 मामले हर माह निपटाये जाते हैं। लेकिन उपभोक्ता न्यायालय में पहुंचने वाले अधिकांश मामले बीमा, विद्युत और बैंक से ही संबंधित हैं। प्राइवेट क्लिनिक के खिलाफ भी कई मामला उपभोक्ता न्यायालय तक पहुंचा है।

उपभोक्ता फोरम इन मामलों में देगा राहत

- यदि क्रय की गई वस्तु में एक या अधिक त्रुटियां हो।

- भाड़े पर ली गई या उपयोग की गई सेवाओं में किसी भी प्रकार की कमी हो।

- यदि किसी व्यापारी द्वारा कोई अनुचित व्यापारिक व्यवहार अपनाया गया हो।

- जीवन की सुरक्षा को जोखिम पैदा करने वाला सामान।

- घटिया समान की बिक्री करने पर।

- वारंटी बताकर सामान वापस नहीं करने पर।

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