दर्द की दवा बन चुका रहे माटी का मोल

कहते हैं कि बचपन का खुश हो या दुश्वारियां, दोनों जीवन भर याद रहती हैं। तभी तो कटेया प्रखंड के अमेया गांव निवासी डा. महिमा पाण्डेय लंदन में रहने के बाद भी अपने बचपन की यादें नहीं भुल सके। अच्छी स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में इस इलाके के लोगों का तड़पना वे लंदन में बस जाने के बाद भी भूल नहीं सके हैं। बचपन की ये यादें ही चिकित्सा पेश से जुड़े डा. महिमा पाण्डेय के लिए अपने इलाके के मरीजों की सेवा करने की प्रेरणा बन गयी हैं। इन्होंने अपनी पहल पर 2006 में अपने पैतृक गांव अमेया में इंडो ब्रिटिश चिकित्सा केंद्र खोल कर लोगों को निशुल्क इलाज की सुविधा देना शुरू किया। अब इस चिकित्सा केंद्र में ईसीजी से लेकर आधुनिक लैब उपलब्ध है। यहां वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से भी विदेश के विशेषज्ञ चिकित्सक मरीजों को परामर्श देते हैं। हर साल यहां स्वास्थ्य शिविर भी लगता है। जिसमें विदेश से आए विशेषज्ञ चिकित्सक मरीजों के असाध्य रोग का इलाज करते हैं। दवाइयां भी मुफ्त दी जाती हैं। अब यह चिकित्सा केंद्र इस इलाके के लोगों के दर्द की दवा बन गयी है। लंदन में रह कर भी डा.महिमा पाण्डेय चिकित्सा केंद्र के माध्यम से माटी का मोल चुका रहे हैं। दूरभाष पर डा.महिमा पाण्डेय ने बताया कि बचपन अमेया में ही गुजरा है। वहीं से पढ़ लिखकर वे आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं। उन्होंने बताया कि बचपन में जब मैं गांव रहता था तो इलाज के अभाव में लोगों को तड़पते देखता था। चिकित्सक बनने के बाद मैं लंदन में आ गया। लेकिन बचपन की वे यादें हमेशा जेहन में बनी रही। अपने पैतृक गांव के इलाके में अच्छी स्वास्थ्य सुविधा नहीं होना हमेशा खटकता रहता था। जिसे देखते हुए 2006 में अमेया गांव में चिकित्सा केंद्र खोल कर ग्रामीणों को निशुल्क तथा अच्छी स्वास्थ्य सुविधा देने की पहल किया। वे बताते हैं कि लंदन में बस जाने के कारण अपने गांव आना जाना काफी कम हो गया है। लेकिन हर साल अमेया में स्वास्थ्य शिविर लगाकर विदेश में रहने वाले अपने साथी चिकित्सकों के साथ अपने इलाके के लोगों की सेवा करने जरूर आता हूं। वे कहते हैं कि उनके पैतृक गांव के इलाके के लोगो को स्वास्थ्य की बेहतर से बेहतर सुविधा मिले इसके लिए वे हमेशा प्रयास करते रहते हैं।

Ads:






Ads Enquiry