बिना जुताई के गेहूं की बुआई कर सकेंगे किसान

बगैर जुताई के गेहूं की बुआई कर किसान कम लागत में ज्यादा उत्पादन ले सकते है। ऐसा संभव है जीरो टिलेज तकनीकी से। जिससे बुआई में समय, संसाधन, बीज व सिंचाई की बचत होती है और पैदावार परंपरागत विद्या की अपेक्षा अधिक होती है। लाइन से लगी फसल में खरपतवार व रोगों का रोकथाम भी आसान होता है। जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया कि इस विधि से गेहूं की बुआई करने से किसानों को तमाम लाभ है। उसके अनुसार सिड ड्रिल मशीन में फाल की जगह दांते लगे होते है। बुआई के समय ये मानक गहराई तक मिट्टी को चिरते है। मशीन के अलग खानों में रखा खाद बीज लाइन से चीरे गए इस गढ्डों में गिरता है। इस विधि से खेती के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि खेत से खर पतवार या पुआल की सफाई करने के बाद उससे बुआई करने से आसानी होती है। अगर खेत में नमी कम है तो बुआई के पूर्व हल्का पाटा लगा दें। धान की कटाई के चंद दिन पूर्व खेत की हल्की सिंचाई करना भी बेहतर होता है। बुआई के समय मशीन में सिर्फ दानेदार उर्वरकों का ही किसानों को प्रयोग करना चाहिए। सिड ड्रिल की उपयोगिता के मद्देनजर ही सरकार इसके खरीद पर किसानों को अनुदान देती है। उन्होंने कहा कि कि प्रति हेक्टेयर बुआई की लागत परंपरागत विधि की तुलना में कम होता है। चूंकि धान के खेत में बची हुई नमी का प्रयोग कर गेहूं की बुआई होती है इससे बुआई में करीब दस दिन का समय भी बचता है। समय से बुआई का असर पैदावार पर पड़ता है। खाद तथा बीज साथ-साथ गिरने से पौधे होनहार होते है। लाइन से बुआई के कारण फसल रक्षा के उपायों में भी आसानी होती है। इस विधि से गेहूं के फसल में बीमारियों का प्रकोप भी काफी कम होता है। फसल अवशेष के खेत में ही पड़े रहने से भूमि में कार्बन तत्व की वृद्धि होती है। जिससे मृदा संरचना में सुधार होता है। ईधन की कम खपत के कारण पर्यावरण प्रदूषण भी इससे कम होता है।

Ads:






Ads Enquiry