Tue, 23August 2016
रहमान मियां को दफ़नाए कुछ दिन ही हुए हैं. अब हर बार, जब
भी उनके परिवार को कार की आवाज़ सुनाई देती है, परिवार
का हर आदमी सब कुछ छोड़कर खेतों में भाग कर छुपने लगता है.
रहमान के भाई हैदर अली ने मुझे बताया, "पुलिस और प्रशासन ने हमें
कहा है कि हमारे पूरे परिवार को ग़िरफ़्तार किया जा सकता है.
नए शराबबंदी क़ानून के बाद वो लोग हमारे घर को भी ज़ब्त कर
सकते हैं. इसलिए उन लोगों ने हमसे पोस्टमॉर्टम नहीं कराने को
कहा."
बिहार में नए शराबबंदी बिल पर राज्यपाल का हस्ताक्षर नहीं
हुआ है, इसलिए यह क़ानून अभी लागू नहीं हुआ है.
मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने लगातार कहा है कि इस क़ानून का
गलत इस्तेमाल नहीं होगा. लेकिन 16 अगस्त को गोपालगंज में अवैध
शराब से मारे गए लोगों के परिजनों का आरोप है कि उन्हें नए
क़ानून के नाम पर डराया जा रहा है.
पड़ोसियों की मदद और समय के साथ उनका डर कम हो रहा है. पेशे
से दर्ज़ी रहे मृतक रहमान मियां के पांच बच्चे हैं. उनकी पत्नी कहती
हैं कि अब उनके बच्चों की पढ़ाई का सवाल अधर में है.
कारण?
अवैध शराब से मारे गए लोगों की सूची में उनके पति का नाम दर्ज़
नहीं है.
बिहार सरकार ने इस हादसे में मारे गए लोगों के परिवार वालों को
4 लाख रुपए का मुआवज़ा देने का एलान किया था, लेकिन यह
मुआवज़ा रहमान मियां के परिवार को नहीं मिलेगा.
रहमान के भाई अली बताते हैं, "रहमान को गोरखपुर के हॉस्पिटल में
रेफ़र कर दिया गया, लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई. उसके
पहले कुछ देर के लिए हम गोपालगंज ज़िला अस्पताल में थे. मैंने देखा
कि ठीक उसी हालत में और 3-4 लोगों को अस्पताल लाया गया
था. उस दौरान एक आदमी ने तो मेरे सामने ही दम तोड़ दिया".
अली कहते हैं, "मेरा मानना है कि इस हादसे में ऐसे कई और लोगों
की भी मौत हुई होगी, लेकिन हमें नए क़ानून के नाम पर डराकर
कहा जा रहा है कि वो मौत अवैध शराब से नहीं हुई है."
गोपालगंज के डीएम ने सोमवार सुबह बताया कि अवैध शराब से 16
लोगों की मौत हुई है, जबकि कुछ अख़बारों के मुताबिक यह संख्या
ज़्यादा है. फ़िलहाल हर कोई इस आंकड़े का अनुमान ही लगा रहा
है क्योंकि कई परिवार अब भी कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं.
गोपालगंज के इस्लामिया मोहल्ले में ज़हीरूद्दीन के परिजनों का
कहना है कि उनकी मौत मिर्गी की वजह से हुई. उनका दावा है
कि ज़हीरूद्दीन ने कभी शराब नहीं पी. उनकी पत्नी का कहना है,
"पुलिस यहां क्यों आएगी, ज़हीरूद्दीन को तो शुरू से मिर्गी की
बीमारी थी." जब पूछा गया कि डॉक्टर के पास गए थे तो जवाब
आया कि डॉक्टर के पास जाने से पहले ही ज़हीरुद्दीन मर गए.
लेकिन ज़्यादातर पड़ोसी कहते हैं कि उन्हें तो पता ही नहीं कि
ज़हीरूद्दीन की मौत कैसे हुई है. कुछ लोग दबी ज़बान में बताते हैं,
"ज़ाहिर तौर पर उनकी मौत शराब पीने से हुई है. उन्हें मिर्गी की
बीमारी थी? कभी नहीं...".
ये संवाददाता जब गोपालगंज में बत्तीस महतो, झंझट मांझी, और
सुबराती मियां के घरों में पहुँचा तो वहाँ भी यही आलम था.
सबकी एक ही कहानी थी. घरवालों का कहना है कि मरने के पहले
मरीज़ ने सिर दर्द, रोशनी धुंधली होने, आंखों में खून आने की बात
कही और अस्पताल और वहां से गोरखपुर या कुशीनगर भेजे गए और
फिर लाश के साथ वापस गोपालगंज लौटे.
परिजनों का आरोप है कि पोस्टमॉर्टम के लिए कहने या किसी
को शराब की वजह से मौत की बात बताने पर, प्रशासन ने उन्हें जेल
में डाल देने की धमकी दी. कुछ परिवार वाले हमसे बात करने को
राज़ी हो गए, लेकिन हम कभी भी पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि
प्रशासन ने लोगों को ऐसी धमकी दी है.
सुबराती मियां की पत्नी दिहाड़ी मज़दूर हैं. वो बताती हैं, "हम
लाश के साथ 1 बजे रात को घर पहुंचे और दो बजे रात पुलिस की
दो गाड़ियां आईं. उन्होंने हमसे कहा कि एक घंटे के अंदर इन्हें दफ़ना
लें वर्ना हमें जेल में डाल दिया जाएगा और हमारे घर को ज़ब्त कर
लिया जाएगा".
एक अख़बार के मुताबिक एक केस में तो प्रशासन ने लाश को बाइक
की पिछली सीट पर बैठा दिया ताकि मीडिया को लगे कि
वो जीवित हैं . जब मीडिया को पता चला कि उन्हें बेवकूफ़
बनाया गया और प्रशासन की पोल खुल गई तो उन्होंने
पोस्टमॉर्टम के लिए लाश को फिर से मंगवा लिया.
बिहार सरकार का कहना है कि मौत का कारण केवल
पोस्टमॉर्टम से पता लगेगा. दूसरी तरफ़ सरकार पर पोस्टमॉर्टम ना
होने देने का आरोप लग रहा है. ज़िला सरकारी अस्पताल के
सिविल सर्जन डॉक्टर एमपी सिंह रिकॉर्ड पर कह चुके हैं कि वो
काफ़ी दबाव में हैं और मीडिया से बात नहीं कर सकते.
सिंह ने कहा "मैं दबाव में हूँ. मुझे बली का बकरा बनाया जा रहा
है. मैं किसी बात पर नहीं बोलूंगा."
यह साफ़ है कि नीतीश कुमार की सरकार के लिए 16 के बदले 60
मौत की ख़बर देखना बहुत मुश्किल था. इससे उनके शराबबंदी
अभियान की और ज़्यादा आलोचना होती. एक दिन तो नीतीश
ने यहां तक कह दिया था कि ये मौतें अवैध शराब की वजह से नहीं
हुई हैं.
ज़्यादातर परिजनों का कहना है कि मारे गए लोग सरकारी
दुकानों से ख़रीदकर देशी शराब पीते थे, लेकिन शराबबंदी के बाद
वो इसे खरीदने खजुरबानी गांव जाते हैं.
खजुरबानी गांव में पासी समुदाय के नौ घर हैं जो ताड़ी बनाते और
बेचते थे. शराबबंदी के बाद उन्होंने यह काम बंद कर दिया.
पड़ोसियों का कहना है कि वो कई दशकों से यह काम कर रहे थे पर
कभी किसी की मौत नहीं हुई.
लेकिन शराबबंदी के बाद शराब बनाने में इस्तेमाल होने वाली
स्पिरिट मिलना मुश्किल हो गया. इसलिए स्थानीय लोग आरोप
लगाते हैं कि इसके लिए हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल होने
लगा है जिससे शराब ज़हरीली हो गई है.
हालांकि ज़िलाधिकारी राहुल कुमार का कहना है, "मारे गए
लोगों का पोर्समॉर्टम नहीं होने देना सच नहीं है. हमने घर जाकर
पोस्टमॉर्टम कराने को कहा, लेकिन तब तक कुछ लोगों का अंतिम
संस्कार भी कर दिया गया था. हमने उन मौतों को भी 16 के
आंकड़े में जोड़ा है. जिन 40-50 मौतों के बारे में बात हो रही है,
कृपया हमें उनका नाम दीजिए, हम जांच करेंगे."
तीन पड़ित जो अपनी आंखों की रोशनी खो चुके हैं, उनका इलाज
पटना मेडिकल कॉलेज में चल रहा है. उनके परिजनों का भी कहना
है कि उन्हें भी नए क़ानून की वजह से गिरफ़्तार होने और जेल जाने
का डर है.
लेकिन राहुल कुमार कहते हैं, "इंसान का जीवन ज़्यादा महत्वपूर्ण है.
हम लोगों से इलाज के लिए सामने आने की अपील कर रहे हैं, हम
उनकी मदद करेंगे. किसी भी पीड़ित या उसके परिवार को
गिरफ़्तार नहीं किया जाएगा."