हत्या के कई मामलों में विसरा जांच की जरुरत पड़ती है। ऐसे में कुछ मामलों में शवों को पोस्टमार्टम हाउस तक ले जाने के बाद बिसरा को जांच के लिए रख लिया जाता है। लेकिन सदर अस्पताल में रखे गये हजारों बिसरे जांच की आस में ही खराब हो चुके हैं। खराब हो चुके विसरे व्यवस्था की नाकामी की गवाही दे रहे हैं। आम यह है कि जमा किये गये हजारों विसरे के निस्तारण में भी स्वास्थ्य विभाग पत्राचार करते-करते थक चुका है। लेकिन आजतक इनका निस्तारण नहीं हुआ। आंकड़ों की मानें तो इनकी जांच के लिए नमूने तो अस्पतालों में रखे जाते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश मामलों की जांच सिर्फ इसलिए नहीं हो पाती कि, इसकी जांच में लोगों की रूचि नहीं रहती है। हां कुछ चर्चित मामलों में इनकी जांच हुई जरुर है। लेकिन हर माह जमा विसरे की संख्या में बढ़ोत्तरी होती जा रही है, और जांच की प्रक्रिया हो नहीं पाती।
पुलिस महकमे के सूत्रों की मानें तो संदिग्ध परिस्थिति में हुई लोगों की मौत के मामले में शव का पोस्टमार्टम कराये जाने के बाद इस प्रक्रिया में शरीर के एक अंग का हिस्सा विसरा के रूप में जांच के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है। सूत्रों की मानें तो विसरा जांच से मौत के कारणों का आसानी से पता लग जाता है। साथ ही इसका प्रयोग न्यायालय में साक्ष्य देने की प्रक्रिया के दौरान दोषी को सजा दिलाने के लिए किया जाता है। लेकिन यहां अलग ही कहानी है। विसरा जांच के लिए रखा तो जाता है, लेकिन जांच की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ने के कारण इनकी संख्या में हर दिन इजाफा होता जा रहा है।
जांच को लैब तक नहीं पहुंचते विसरे
पोस्टमार्टम घर से लेकर सदर अस्पताल परिसर में जमा किये गये विसरों को देखने से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि इन्हें नियमों के अनुसार निर्धारित अवधि में लैब तक पहुंचाने की प्रक्रिया शुरु से ही सुस्त रही है। जमा विसरों की तादात यह बात बनाने के लिए काफी है। आलम यह कि सदर अस्पताल में जमा कई विसरे बीस साल से भी अधिक पुराने हैं। कई मामलों में न्यायालय में विचारण की प्रक्रिया भी पूर्ण हो चुकी है, या पूर्ण होने के कगार पर है। लेकिन जांच रिपोर्ट नहीं आयी। इस संबंध में विशेषज्ञ बताते हैं कि नियमों के अनुसार इनकी जांच विसरा लिये जाने के नब्बे दिन के अंदर की जानी चाहिए। क्योंकि इसके बाद ये खराब होने लगते हैं।
जांच नहीं होने का क्या है वजह
सूत्रों की मानें तो पूरे बिहार में दो स्थानों पर विसरा जांच के लिए लैब स्थापित किये गये हैं। इन्हीं प्रयोगशालाओं में इनकी जांच होती है। प्रति वर्ष विसरा की संख्या में तो इजाफा होता है। लेकिन जांच के लिए प्रयोगशाला की संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। यह सबसे बड़ा कारण है कि इनकी जांच कराने के चक्कर में कांड के अनुसंधानकर्ता नहीं पड़ते।