विद्यालयों में सत्र समाप्ति पर है और इस सत्र की अंतिम परीक्षा देने की तैयारी में छात्र जुटे हैं। लेकिन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले इन छात्रों में से कई ऐसे छात्र भी अपने-अपने वर्ग की फाइनल परीक्षा में बैठेंगे, जो बिना किताब की ही अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। वर्तमान वर्ष में जिले में दो हजार से अधिक ऐसे छात्र हैं, जिन्हें शिक्षा विभाग ने आज तक पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध नहीं कराया है। इसके लिए जिला शिक्षा विभाग भी दोषी नहीं है। असली दोष तो सरकार का है। सरकार ने ही वर्तमान वर्ष में मांग के अनुरुप पुस्तकों को उपलब्ध नहीं कराया है। इसका असर बच्चों के शिक्षण कार्य पर पड़ा है।
आंकड़ों की मानें तो पिछले तीन वित्तीय वर्ष से मांग के अनुरुप पुस्तकों का आवंटन नहीं होने के कारण समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। सूत्र बताते हैं कि सरकार ने सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को निश्शुल्क पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराने की व्यवस्था कर रखी है। इस योजना के तहत जिला शिक्षा विभाग ने राज्य कार्यालय के सामने अपनी मांग भी रखी। लेकिन मांग के अनुरुप किताबें नहीं मिलने से एक हजार से अधिक छात्र बिना किताब की ही अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो सत्र 2012-13 के लिए 507474 पुस्तकों की मांग राज्य कार्यालय से की गयी थी। लेकिन किताबें मिली 489069। ऐसे में वर्ष 13-14 में भी 18405 बच्चे बगैर पुस्तक के ही रह गये। वर्ष 2014-15 के लिए 512668 पुस्तकों के लिए मांग पत्र राज्य स्तरीय कार्यालय से की गयी। लेकिन इसके विरुद्ध 1235 पुस्तकें कम मिली। वर्तमान वित्तीय वर्ष में भी वर्ग एक से आठ तक शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र-छात्राओं के लिए 5,25,663 सेट पुस्तकों की मांग की गयी। लेकिन मांग के विरुद्ध 2113 सेट पुस्तकें कम प्राप्त हुई। ऐसे में इतने बच्चों को वर्तमान वर्ष में बगैर पुस्तक के ही शिक्षण कार्य करने को विवश होना पड़ा। ज्ञातव्य है कि पहली से आठवीं कक्षा की पुस्तकें खुले बाजार में नहीं मिलती हैं। ऐसे में बच्चों के अभिभावक इन्हें बाजार से भी नहीं खरीद सके।