आबादी बढ़ी तो घट गया किरासन का आवंटन

1991 में इस जिले की कुल आबादी अठारह लाख से भी कम थी। तब प्रति परिवार पांच लीटर किरासन मिलता था। एक दशक बाद 2001 में जिले की आबादी 21 लाख को पार कर गयी और किरासन घटकर चार लीटर पर आ गया। वर्तमान समय में आबादी 25 लाख को भी पार कर गयी है और किरासन मिल रहा केवल पौने तीन लीटर। सरकार का यह फंडा समझ से परे है। आबादी बढ़ रही है, संसाधन की स्थिति करीब-करीब ज्यों की त्यों है। इसके बाद भी किरासन का आवंटन कम होने से लोगों का काम वर्तमान किरासन की व्यवस्था से नहीं चल पा रहा है।

ग्रामीण इलाकों की दशा तो कहीं से भी ठीक नहीं लगती। जो व्यवस्था दस साल पूर्व थी, वहीं स्थिति आज भी है। ऐसे में सैकड़ों गांव हैं, जहां बिजली आज भी एक सपना है। गांवों में संयुक्त परिवारों में बीस से तीन लोग एक साथ रहते हैं लेकिन एक परिवार को मिले एक कूपन के सहारे केवल ढाई लीटर तेल ही लोगों को मिल पाता है। पौने तीन लीटर का फंडा सरकार ने निर्धारित कर रखा है लेकिन जिले में शायद ही कोई डीलर हो जिसके पास ढाई सौ ग्राम का कोई बटखरा मौजूद हो। ऐसे में सीधा ढाई लीटर तेल ही लोगों को मिल रहा है। हद तो यह कि कूपन पर किरासन तेल की निर्धारित कीमत के विरुद्ध डीलर 20 रुपये प्रति लीटर की दर से किरासन की कीमत वसूल रहे हैं। ऐसी बात नहीं कि इन बातों की जानकारी आपूर्ति विभाग को नहीं है। बावजूद इसके यह धंधा बेरोकटोक चल रहा है और डीलर एक तो मानक से कम तेल देते हैं और उपर से मनमाना कीमत वसूल रहे हैं। ग्रामीण इलाके के अजय कुमार तिवारी, मानवेन्द्र पंडित, राजेन्द्र सोनार, बाबूलाल पाण्डेय तथा शंकर नोनिया जैसे लोगों ने बताया कि ढाई लीटर किरासन में एक माह का काम चलाना मुश्किल है। ऐसे में उन्हें किरासन खुले बाजार से भी ऊंची कीमतों पर खरीदना पड़ता है।

खुले में बिक रहा नीला किरासन

सरकार ने भले ही नीला किरासन तेल की बिक्री खुले बाजार में बेंचने से प्रतिबंध लगा रखा हो लेकिन जिले की तमाम दुकानों पर नीला किरासन धड़ल्ले से बिक रहा है। किरासन की कालाबाजारी रोकने के दिशा में कोई भी कारगर कदम नहीं उठाने के कारण यह स्थिति पैदा हो रही है। वर्तमान समय में हालत यह है कि खुला बाजार में नीले किरासन तेल की कीमत 45 से 50 रुपये प्रति लीटर है।

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