यहां शारीरिक शिक्षा के नाम पर खेला जा रहा खेल

वैसे तो सरकारी विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम लागू है। लेकिन सरकारी विद्यालयों के शैक्षणिक घंटी में खेल की घंटी ही गायब होती जा रही है। ऐसे में बगैर खेल के शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम महज मजाक बनता जा रहा है। विद्यालयों में खेल का मैदान गायब होना भी शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम पूर्ण नहीं होने का सबसे बड़ा कारण है।

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि वर्ष 2005-06 से लगातार तीन साल तक सरकारी विद्यालयों में खेल मैदान के विकास की ओर सरकार का ध्यान गया। ऐसे में सरकार ने तमाम हाई स्कूलों को खेल मैदान की दशा सुधारने के लिए राशि उपलब्ध करायी गयी। इस राशि से खेल मैदानों की दशा में सुधार का कागजी स्तर पर प्रयास किया गया। तमाम प्रयास के बाद भी स्कूलों में खेल मैदानों की दशा नहीं सुधरी। हां, विद्यालयों को उपलब्ध कराये गये पैसे जरूर खर्च हो गये। हद तो तब हो गयी जब शिक्षा विभाग ने अपने कैलेंडर में शारीरिक शिक्षा को शामिल किया, लेकिन विद्यालयों से खेल की घंटी ही गायब हो गयी। आज स्थित यह है कि जिले के दो दर्जन हाई स्कूलों में खेल की घंटी ही नहीं है। ऐसे में शारीरिक शिक्षा का सपना पूर्ण होता नहीं दिख रहा है।

नहीं है शारीरिक शिक्षक

हाई स्कूलों के आंकड़ों को गौर करें तो जिले के करीब तीन दर्जन हाई स्कूलों में शारीरिक शिक्षक के पद रिक्त हैं। जहां शारीरिक शिक्षक तैनात भी हैं, वहां इसकी शिक्षा छात्रों को बस कागज पर ही पूर्ण करा ली जाती है। शारीरिक शिक्षकों की मनमानी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक शारीरिक शिक्षक अपने स्कूल में कम और सरकारी कार्यक्रमों में अधिक मौजूदगी दर्ज कराते हैं। प्रशासनिक स्तर पर शारीरिक शिक्षकों पर लगाम लगाने में विफलता के कारण यह स्थिति पैदा हुई है।

हाई स्कूलों की व्यवस्था लचर

शारीरिक शिक्षा के लिए हरेक विद्यालय में खेल मैदान से लेकर छात्रों के खेलकूद के उपकरण तथा जिम का निर्माण महत्वपूर्ण है। लेकिन यहां करीब नब्बे प्रतिशत सरकारी हाई स्कूलों में पूरी व्यवस्था ही लचर है। हाल के तीन वर्ष के दौरान उत्क्रमित किये गये हाई स्कूलों में तो शारीरिक शिक्षा की पूरी संरचना ही गायब दिखती है।

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