महादलित टोलों में खिलने लगे हैं 'उमंग' के फूल

दोपहर होने को है और हजियापुर मुसहर टोली के 'काका' काली स्थान पर पूजा चढ़ाने गए हैं। बस्ती के लोग इनके पूजा चढ़ा कर लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं कि काका आएं और उस स्थान की साफ-सफाई को अंतिम रूप दे दिया जाए, जहां गणतंत्र दिवस पर वे खुद अपने हाथों से तिरंगा फहराएंगे।

इस बस्ती में अपने ही समुदाय के किसी बुजुर्ग के हाथों झंडा फहराने को लेकर माहौल बदला-बदला सा नजर आ रहा है। सरकार के इस छोटी सी पहल ने यहां के लोगों में आत्म गौरव का ऐसा बोध करा दिया कि बदहाली में भी 'उमंग' के फूल खिलने लगे हैं।

कलेक्ट्रेट से आधा किलोमीटर आगे बढ़ने पर पड़ता है हजियापुर मोड़। इस मोड़ से सीधे एनएच 28 पार कर पहले दांए और फिर बाएं मुड़ कर कुछ दूर आगे बढ़ने पर शुरू हो जाती है हजियापुर मुसहर टोली की चौहद्दी। करीब डेढ़ हजार की आबादी वाले इस बस्ती में कहीं महिलाएं और बच्चे, सड़क पर बैठते मिलते हैं तो कहीं पुरुषों की टोली नजर आती है। इन्हीं टोली में मिलते हैं नरसिंह राउत, बच्चन राउत और उनके कई अन्य साथी। बात चली यहां होने वाले झंडातोलन की तो सभी के आंखों में चमक साफ दिखने लगी। वे बताते हैं कि अपने ही समुदाय के बुजुर्ग के हाथों झंडा फहराने को लेकर बच्चे-बूढ़े से लेकर महिलाएं और युवा काफी उत्साहित हैं। सभी मिल कर जहां झंडा फहराया जाएगा, उस स्थान की साफ सफाई में सहयोग दे रहे हैं। हालांकि इस बस्ती की सड़कों पर खेलते नग्नधंडग बच्चे और फटे पुराने कपड़ों में लिपटी पुरुषों की देह, यहां की बदहाली भी खुद ही बयां कर देती है। बस्ती के लोग बताते हैं कि खेत मजदूरी और रिक्शा चलना ही उनकी जीविका का साधन है। यहां इंदिरा आवास भी बने हैं, लेकिन कई लोग इससे वंचित भी हैं। राशन-किरासन तो आगे-पीछे कर के सभी को मिल जाता है। लेकिन यहां के पढ़ने वाले बच्चों को खिचड़ी कभी कभार ही नसीब होती है। परेशानी यहां के हर घर और आंगन में हैं। रोजी रोटी के लिए की जा रही हाड़तोड़ मेहनत से सभी की देह थकी-थकी सी है। लेकिन जब से सरकार इनके बारे में सोचने लगी हैं, तब से इनमें उम्मीदें भी हिलोरा मारने लगी हैं। तभी तो बस्ती के लोग पूरे जोश से बताते हैं कि इस बार झंडा फहराने वाले बुजुर्ग भी मजदूरी ही करते हैं।

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