जिले में वाहनों की भरमार के बीच यातायात की व्यवस्था दशकों पुरानी है। आबादी बढ़ी और उसकी के अनुपात में सड़कों पर वाहन उतर आए, लेकिन आज तक जिले में ट्रैफिक पुलिस की व्यवस्था नहीं हो पाई। पुलिस के जवान और होमगार्ड के सहारे जैसे-तैसे शहरी इलाकों में यातायात की व्यवस्था बनाये रखने की जद्दोजहद अभी भी जारी है। नतीजा सामने है। सड़क हादसों में लोग जान गवां रहे हैं और शहरी इलाकों से लेकर राष्ट्रीय उच्च पथ पर जाम में फंस कर वाहन चालक पसीना बहाने को मजबूर हैं। सड़कें है तो वाहन उस पर चलेंगे ही, कुछ इसी तर्ज पर पूरे जिले में यातायात की व्यवस्था संचालित हो रही है। यातायात के नियम-कायदे, पूरी तरह से वाहन चालकों और सड़क पर चलने वाले लोगों की मर्जी पर अभी भी निर्भर है।
नहीं हैं ट्रैफिक लाइट और संकेतक
जिला मुख्यालय सहित जिले के किसी भी शहरी इलाके में ट्रैफिक लाइट नहीं लगाए गए हैं। मुख्य चौक-चौराहों पर लोग अपने विवेक से इस पार से उस पार होते हैं। जिन चौक-चौराहों पर अधिक भीड़ होती है या उधर से वरीय पदाधिकारियों का आना-जाना लगा रहता है, वहां होमगार्ड के जवान ट्रैफिक को नियंत्रित करते हैं। हालांकि राष्ट्रीय उच्च पथ पर कुछ स्थानों पर यातायात संकेतक लगाए गए हैं। लेकिन शहरी इलाकों में इसका भी पूरी तरह से अभाव है। स्कूल-कालेज, अस्पताल आदि के पास कुछ चिन्हित स्थानों को छोड़ अन्य स्थानों पर संकेतक इस जिले में देखने को नहीं मिलते हैं।
नहीं है ट्रैफिक पुलिस
जिले में ट्रैफिक पुलिस की व्यवस्था नहीं है। ट्रैफिक पुलिस की कमी यहां होमगार्ड के जवान पूरी करते हैं। शहरी इलाके के मुख्य चौराहों पर यातायात की व्यवस्था संभालने के लिए होमगार्ड के जवान तैनात किए गए हैं। अगर जाम की स्थिति विकट बन गयी तो पुलिस के जवान भी यातायात संभालने के लिए लगा दिए जाते हैं। लेकिन टै्रफिक नियमों और उसे संभालने के प्रशिक्षण के अभाव में इन जवानों के पास लाठी ही एक सहारा रहता है। लाठी भांज कर ये यातायात का पहिया आगे सरकाते रहते हैं।
तीन साल में हुए हादसे
साल मृत घायल
2012 58 137
2013 79 149
2014 104 187
2015 82 129
नोट- 2014 के आंकड़े नवम्बर तक के हैं।