अब हर दरबार में मत्था टेक रहे उस्ताद

अरे, जाएंगे कहां, फिर लौट के ये खुद ही आ जाएंगे, जब चुनाव प्रचार चरम पर था तब एक प्रत्याशी की यह टिप्पणी मतदान के बाद सच होने लगी है। प्रत्याशी इस बात से नाराज थे कि ऐन चुनाव के मौके पर उनके वे समर्थक नाराज हो गए, जिन्हें उन्होंने अपना समझा था। अपना भी ऐसा की ठेका-पट्टी दिलाया और उनकी माली हालत सुधर गयी। अब मतदान कार्य संपन्न हो गया है और प्रचार के दौरान निष्क्रिय रहे ठेकेदार नुमा उस्ताद फिर से सक्रिय हो गए हैं। ये उस्ताद हर उस दरबार में मत्था टेक रहे हैं, जिनकी जीत की संभावना उन्हें दिख रही है। पक्ष या विपक्ष, इससे इनका लेना देना भी नहीं है। जहां सूरज उगने की हल्की सी भी उम्मीद दिख रही हैं, वहां ये उस्ताद जाना नहीं भूल रहे हैं। वैसे इनकी सक्रियता मतदान के ठीक बाद ही बढ़ गयी थी। मतदान समाप्त होने के साथ ही इनके मोबाइल फोन की घंटी भी धनधनाने लगी। सर, बधाई हो, आपकी तो लहर चल रही है, कुछ इसी अंदाज में ये उन प्रत्याशियों को जो लड़ाई में दिखे, जीत की बधाई देने में जुट गए। उसके बाद से उनकी सक्रियता का आलम ये है कि प्रत्याशी तो प्रत्याशी उनका निकट समर्थक दिखा नहीं कि वे गुण-गान में लग जा रहे हैं। हद तो यह कि तुरंत चाय-पान और मिष्ठान मंगा कर उनकी सेवा भी करने लगे हैं। हालांकि ये इस बात का ध्यान जरूर रख रहे हैं कि कहीं अगल-बगल दूसरे प्रत्याशी का समर्थक तो वहां नहीं हैं। जिससे दूसरे दरबार में कहीं बात बिगड़ न जाए। इधर लड़ाई में बने प्रत्याशी भी इनकी सक्रियता का मतलब समझ रहे हैं। लेकिन इन उस्तादों की खुशामद का आनंद भी उठा रहे हैं, ये सोच कर कि नतीजा आने दो, उसके बाद ऐन मौके पर नाराज होने का हिसाब चुकाएंगे।

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