Mon, 18 Apr 2016
यहां के लोगों की रोजी रोटी हाड़तोड़ मेहनत पर ही निर्भर है। खेती बारी के साथ ही यहां के लोगों का मुख्य धंधा मजदूरी है। लोग प्रति दिन मजदूरी के लिए घर से बाहर जाने को विवश होते हैं। लेकिन गांव के लिए एकमात्र संपर्क मार्ग पर बना चचरी का पुल हमेशा खतरे को आमंत्रण देता नजर आता है। बरौली प्रखंड के इस परसा दलित बस्ती की कुल आबादी करीब चार सौ है। लेकिन यहां की आबादी को न पीने का शुद्ध पानी मिलता है और ना ही बिजली की रोशनी। अपने टोली तक पहुंचने के लिए सड़क के लिए भी यहां के लोग तरस रहे हैं।
प्रखंड मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दक्षिण-पूरब कोना पर सरेया नरेन्द्र-परसा पथ पर स्थित है सरेया नरेन्द्र पंचायत का यह परसा दलित बस्ती। लगभग चार सौ की आबादी वाले इस टोली में अनुसूचित जाति व धुनिया जाति के लोग रहते हैं। आज भी यहां के लोगों की जीविका अपने पुस्तैनी धंधा से चलती है। लोग पूरे दिन हाड़ तोड़ मजदूरी करते हैं। ग्रामीण इलाके के पिछड़े गांव में लोगों के अधिकांश घर झोंपड़ी के ही हैं। यहां के लोग बताते हैं कि गांव में लगे एक मात्र सरकारी चापाकल से उनकी प्यास बुझ रही है। आज सरकार प्रत्येक गांव को बिजली से जोड़ने की बात कह रही है, बावजूद इस गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंची। सरकारी सुविधा के नाम पर यहां एक आंगनबाड़ी केंद्र है। यहां के निवासी बताते हैं कि पानी, बिजली से लेकर वे सड़क तक के लिए तरस रहे हैं। वे कहते हैं कि कई बार जनप्रतिनिधियों से अपने टोली में बुनियादी सुविधा के लिए गुहार लगायी गयी। लेकिन इसके बाद भी किसी ने भी उनकी टोली की सुध नहीं ली।
क्या कहते हैं ग्रामीण:
ग्रामीण: करीब एक साल पूर्व गांव का जोड़ने के लिए बनाया गया पुल ध्वस्त हो गया था। लेकिन आजतक इसे दोबारा नहीं बनाया गया। ऐसे में गांव के लोग चचरी के पुल के सहारे इसे पार करने को विवश हैं। इससे हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
ग्रामीण: इस गांव में गरीब परिवार के लोगों की संख्या अधिक है। बावजूद इसके गांव का विकास नहीं किया गया। गांव में आजतक बिजली नहीं पहुंचना इस बात कर सबूत है। गांव के लोगों की प्यास एक मात्र सरकारी चापाकल से बुझ रही है।
ग्रामीण: चुनाव के समय विकास का वादा किया जाता है। लेकिन चुनाव के बाद उसे भुला देते हैं। एक बार फिर से विकास का वादा किया जा रहा है। वोट के लिए वादा की झड़ी लगायी जा रही है। हर चुनाव के समय यही होता है। लेकिन चुनाव के बाद कोई काम नहीं किया जाता है। यह गांव मूलभूत सुविधाओं से आज तक वंचित है।