कटाव पीड़ितों पर भारी पड़ रही 'पूस की रात'

 पूस की सर्द भरी रात गंडक नदी के कटाव पीड़ितों व गरीबों पर भारी पड़ने लगी है। शहर में रिक्शा चलाने वाले हों या झुग्गी झोंपड़ी में शरण लेने वाले परिवार या सारण मुख्य तटबंध पर बसे कटाव पीड़ित हों या रेलवे स्टेशन के किनारे पालिथीन के नीचे गुजर बसर कर रहे परिवार। इनकी दशा पूस की सर्द भरी रात में देखी नहीं जा सकती। ठंड में जब लोग शाम ढलने के बाद घरों से बाहर निकलने में भी परहेज कर रहे हैं, इन परिवारों के लोग पालिथीन सीट व प्लास्टिक के बोरे की झुग्गी झोंपड़ी में पूरी रात गुजार रहे हैं।

दियारा इलाके के बांधों पर शरण लिए कटाव पीड़ितों की दशा को शब्दों में पिरोना काफी कठिन है। कटाव पीड़ितों की समस्या तो काफी पुरानी है, लेकिन ठंड के मौसम में इनकी दशा अत्यंत दयनीय हो गयी है। दियारा के तमाम गांवों में कटाव पीड़ितों की दशा एक समान है। पुराने घर से बेघर होने के बाद कटाव पीड़ित अब जहां-तहां आश्रय लिए हुए कहीं झुग्गी झोपड़ी तो कही पालिथीन के नीचे शरण ले रहे हैं। न तन ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र है और ना नहीं रात में सोने के लिए कंबल व रजाई। गरीबी व बेबसी की पीड़ा इनकी आंखों में झलक रही है। दियारा में बेघर हुए सभी घरों की स्थिति एक जैसी ही है।

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