खुले आसमान में रखे जाते हैं अनाज

कहने को तो जिले में पैक्स के माध्यम से धान खरीदे जाने की व्यवस्था पूरी तरह से दुरुस्त है। लेकिन धान क्रय की वास्तविक स्थिति को देखे तो यहां समस्याओं का अंबार है। पैक्स को धान क्रय करने का लाइसेंस तो मिलता है, लेकिन यहां उपलब्ध संसाधनों को दुरुस्त करने का ख्याल किसी को नहीं आता। यहीं कारण है कि गोदाम जैसी बेहतर सुविधा जिले के तीस प्रतिशत पैक्स के पास नहीं है। अगर यहां गोदाम दिखते भी हैं तो वे इतने छोटे हैं कि दो दिन की ही धान खरीद के बाद ये भर जात हैं। आंकड़ों की बात करें तो जिले के 234 पैक्स के माध्यम से धान की खरीद की जाती है। इनमें से करीब दो दर्जन पैक्स ऐसे भी हैं, जहां संसाधन उपलब्ध नहीं है। ऐसे में धान का क्रय प्रारंभ होते ही ये पैक्स हाथ खड़ा कर देते हैं। गत वर्ष भी क्रय से हाथ खड़ा करने वाले पैक्स की संख्या 23 थी। एक साल में स्थिति में कोई भी बदलाव नहीं आया है। यानि इस बार भी दो दर्जन से अधिक पैक्स धान क्रय से हाथ उठाने को तैयार दिख रहे हैं।

समय से नहीं होता उठाव

धान का क्रय करने वाले पैक्स में रखे धान का उठाव समय से नहीं होना इसका बड़ा कारण है। क्रय प्रारंभ होने के समय धान में नमी के कारण भी कई पैक्स में धान लंबे समय तक पड़ा रह जाता है। इस स्थिति के लिए एसएफसी जिम्मेदार है। एसएफसी हर साल धान क्रय करने के समय धान में नमी के बहाने पैक्स को परेशान करता है। इस समस्या के निराकरण का कभी भी सटीक उपाय नहीं किया गया।

नहीं पूरा हो पाता क्रय का लक्ष्य

क्रय केन्द्र पर संसाधन की कमी के कारण किसी भी वर्ष जिले में धान क्रय का लक्ष्य पूर्ण नहीं हो पाता। आंकड़ों की मानें ता पिछले चार साल में किसी भी वर्ष 40 हजार मीट्रिक टन भी धान क्रय नहीं हो सकी। जबकि इस अवधि में जिले का लक्ष्य 70 से 76 हजार मीट्रिक टन का रहा।

एसएफसी की मनमानी भी बड़ा कारण

पैक्स गोदाम में धान भरे रहने के पीछे एसएफसी की मनमानी भी एक बड़ा कारण रहा है। पूर्व के आंकड़ों की मानें तो पैक्स में खरीद की गयी धान को लेने में अनावश्यक तरीके से एसएफसी के क्रय केन्द्रों द्वारा मनमानी की जाती रही है। इसी व्यवस्था को देखते हुए गत वर्ष पैक्स को धान की अपने स्तर पर मिलिंग कराने के निर्देश दिये गये थे। लेकिन यह व्यवस्था भी कारगर साबित नहीं हो सकी।

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