कटेया के रामेश्वर यादव के पास दो बीघा से भी कम जमीन है। कम खेत को देखते हुए जीविका चलाने के लिए उन्होंने दो भैंस भी पाल रही है। लेकिन अब भैंस पालना इन्हें महंगा पड़ने लगा है। रामेश्वर यादव बताते हैं कि कंबाइन से फसल कटवाना अब भारी पड़ने लगा है। पहले खुद भूसा तैयार कर लेते थे। लेकिन अब भैंस के लिए ही भूसा खोजना पड़ रहा है। समझ में नहीं आ रहा कहां से सस्ता भूसा लाएं। यह समस्या सिर्फ रामेश्वर प्रसाद की नहीं है। उनकी तरह बड़ी संख्या में ऐसे किसान है, जिन्होंने पशु पाल रखा है और अब भूसा को लेकर संकट झेल रहे है। जिले में बढ़ती ठंड के साथ भूसे का बाजार गरम हो गया है। भूसा के भाव ऐसे ही बढ़ते रहे तो फुटकर में प्रति किग्रा भूसे के दाम दहाई के अंक पार कर सकते है। गांव में भूसे की कीमत 1200 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुकी है। पशुपालकों की मानें तो मार्च-अप्रैल तक भाव 1600 रुपया या इससे अधिक तक जा सकते है। शहर में मौजूदा भाव 1200 रुपये है। सीमित मात्रा में खरीदने वाले पशुपालकों को प्रति किग्रा यह 12 रुपया पड़ रहा है। खुदरा भाव अभी से 15 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया है।
कंबाइन से कटाई तेजी की वजह
समय से मजदूरों के नहीं मिलने और बढ़ती मजदूरी को देखते हुए अब कंबाइन से धान और गेहूं की कटाई का प्रचलन काफी बढ़ गया है। इससे किसानों को समय की बचत तो होती ही है, लागत भी कम आती है। लेकिन अब कंबाइन से कटाई ही पशुपालकों के लिए परेशानी का कारण बन गया है। कंबाइन से कटाई के कारण भूसा की कमी से इसके दाम काफी बढ़ गए हैं। हालांकि डंठल से भूसा बनाने वाली मशीन का चलन भी अब जिले में शुरू हो गया है। लेकिन अभी डंठल से भूसा बनाने वाले खुद भूसा लेकर चले जाते हैं। किसान भी खेत की सफाई मुफ्त में हो जाने पर ही संतोष कर लेते हैं। पशुपालक कहते हैं कि जब तक धान और गेहूं की कटाई के लिए किराये पर कंबाइन मिलने की तरह डंठल से भूसा तैयार करने वाली मशीन भी किराये पर नहीं मिलेगी, तब तक भूसा का संकट इसी तरह से बना रहेगा।