सरकारी सप्लाई का पानी घरों में आना और नहीं आना, यहां के लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखता है। घरों में लगाए गए निजी संसाधनों से प्राप्त पानी से ही यहां के लोगों की प्यास बुझती है। हां, सप्लाई के पानी से लोगों को कुछ सहूलियत जरूर मिल जाती है, कपड़ा धोने, घर पोछने और बर्तन धोने के लिए, इन्हें अपने संसाधनों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ा है। जलापूर्ति योजना से सप्लाई होने वाले गंदा पानी को देखते हुए लोगों ने इसे पीने से तौबा कर लिया है। सप्लाई के पानी से प्यास बुझाने के बदले 'इनका पानी इन्हें ही मुबारक' की तर्ज पर लागे प्यासे रहने में ही भलाई समझते हैं।
जिले में शुद्ध पेयजल के नाम पर कई योजनाएं चलाई गयी। करोड़ों खर्च हुए। इन योजनाओं से कहीं पानी की सप्लाई शुरू हुई और कहीं निर्माण के बाद योजना को ही भुला दिया गया। जिला मुख्यालय में ही दो जलमीनारों से पानी की आपूर्ति की जाती है। सप्लाई का पानी लोगों की पहुंच में रहे, इसके लिए अंडरग्राउंड पाईप बिछाई गयी। लेकिन आलम यह है कि पाईप लगाने के बाद इसके रखरखाव की तरफ ध्यान ही नहीं दिया गया। नतीजन पाईप जगह-जगह फूट जाने से कीचड़ युक्त गंदा पानी ही घरों तक पहुंच पाता है। हालांकि पीएचइडी विभाग अपनी तरफ से पाइपों की मरम्मत का काम करता रहता है। लेकिन बनने और बिगड़ने का सिलसिला साथ-साथ चलने से प्यास बुझाने की जगह लोग सप्लाई के पानी का इस्तेमाल घर धोने-पोंछने में ही करते हैं। जिला मुख्यालय के साथ ही प्रखंड मुख्यालयों में भी पेयजल सप्लाई की स्थिति कमोवेश एक सी है। कुचायकोट स्थित जलमीनार का उद्घाटन हुआ लेकिन आज इससे पानी नहीं निकलता। इसी प्रकार मीरगंज के नरईनियां में दो साल से बन कर तैयार जलमीनार को आज तक चालू नहीं किया गया। पुराने पम्प हाउस से पानी की सप्लाई तो की जाती है, लेकिन यहां भी गंदगी के कारण इस पानी को पीने से लोग परहेज करते हैं।