गोपालगंज: बगैर निबंधन के चल रहीं एक हजार से अधिक दवा दुकानें

आंकड़े सचमुच चिंता बढ़ाने वाले हैं। जिले में एक हजार से अधिक दवा की दुकानें बिना रजिस्ट्रेशन के चल रही हैं। बात सिर्फ रजिस्ट्रेशन तक ही सीमित नहीं हैं। इन दवा की दुकानों में बिना चिकित्सक के पर्ची के भी दवाइयां दी जाती हैं। मरीज इन दुकानों पर आते हैं, वे अपनी तकलीफ बताते हैं और दवा के दुकानदार खुद चिकित्सक बन अपनी दुकान से उन्हें दवाइयां देते हैं। आंकड़े ही बताते हैं कि जिले में ढाई हजार से अधिक दवा की दुकानें हैं। लेकिन महज 1205 दवा की दुकानों का ही निबंधन हुआ है। ऐसे में यहां कस्बों में जगह जगह खुली अधिकांश दवा की दुकानें बिना रजिस्ट्रेशन के ही चल रही हैं। कुछ दवा की दुकानें ऐसी भी हैं, जिनका रजिस्ट्रेशन तो कराया गया। पर, दुकानदार ने निबंधन की तिथि समाप्त होने के बाद उसका रिन्यूवल ही नहीं कराया। लेकिन इसके बाद भी ये दुकानें संचालित हैं और स्वास्थ्य विभाग इनकी तरफ ध्यान नहीं दे रहा है। वहीं इस संबंध में जब ड्रग्स इंसपेक्टर से संपर्क किया गया तो उनका मोबाइल बंद मिला।
दवा के दुकानदार बने डाक्टर
 यहां दवा के दुकानदार अपने को डाक्टर से कम नहीं समझते हैं। दवा लेने आने वाले मरीजों से उनकी बीमारी के बारे में पूछकर दवा बेचते हैं। हद तो यह कि मरीजों को ये दुकानदार डाक्टर से इलाज कराने की सलाह भी नहीं देते हैं। इनको इस बात की ¨चता होती है कि अगर मरीज डॉक्टर के पास चले गए तो वहीं से दवा खरीद लेंगे। ऐसे इनकी यह ¨चता जायज भी है। अधिकांश चिकित्सकों के क्लिनिक में ही दवा की दुकानें भी हैं। चिकित्सक भी ऐसी ही दवाइयां लिखते हैं जो दूसरी दवा की दुकानों पर शायद ही मिले।

नियमों का नहीं हो पालन
 दवा दुकानदारों के लिए दवा बेचने के लिए कई नियम निर्धारित किए गए हैं। लेकिन यहां दुकानदार इन नियमों का पालन शायद ही करते हैं। नियमों के अनुसार दवा दुकान में एक फार्मासिस्ट का होना अनिवार्य होता है। बिना डॉक्टर का पर्चा देखे दवा नहीं बेचना हैं। खासकर कोई भी कफ सिरप या दिमाग से संबंधित दवाइयां। इसके साथ ही दवा की दुकान में फ्रिज तथा शीशा लगे सेफ में ही दवाएं रखना है। लेकिन ग्रामीण इलाके में खुले दवा की दुकानों की बात छोड़ दें, यहां तो शहर के ही कई दुकानों में न तो फ्रिज है और ना ही दवा रखने के लिए शीशा का सेफ बना हुआ है।

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